Sunday 15 June 2014

ध्यान

तेरी है धरती, तेरा आसमान,
एक ही ध्येय, एक ही ध्यान।

बंद कर आँखें न खोल अपने कान,
करदे अपने रातों की नींद दान।
तेरी है धरती, तेरा आसमान,
एक ही ध्येय, एक ही ध्यान।

नहीं तू सिर्फ मिट्टी का खिलौना
जिसमें भर दी है जान।
न देख इधर-उधर,
तू  खूद ही का है भगवान।
तेरी है धरती, तेरा आसमान,
एक ही ध्येय, एक ही ध्यान।

न्योंछावर कर दे तन-मन,
भुला दे सारा जहान।
सफलता की उचाईयों से जा मिल 
गगनभैदी शिखर भी मांगे तेरा निशान 
तेरी है धरती, तेरा आसमान,
एक ही ध्येय, एक ही ध्यान।


श्रधांजली - स्व. महंमद रफ़ी

हमारे ग़मों के साथी, हमें गम में छोड़ गये।
मंझील दूर थी अभी, राहों में छोड़ गये।
हमराज, हमसफर, दुिनया में तनहा छोड़ गये।
प्यास बूझी भी नथी, की प्यासे छोड़ गये।
हँसते-हँसते, रोता हुआ छोड़ गये।
बिदा न किया हमने, हमसे रूठ, हमें छोड़ गये।
शाम ढली भी न थी, रात का कफ़न ओढ़ गये।
वक्त भी न दिया, एहसान-फरामोश बना गये।
अपनी याद, अपनी आवाज छोड़ गये।
हमारी दुआओं का न असर हुआ
आवाज के मािलक, अपनी याद, अपनी आवाज छोड़ गये।

स्व. महंमद रफ़ी के नाम


भूल

मेरी भूल है तो बस इतनी,
मेरी भूल को तुम्हारी भूल समझा।
तुमने दिखाए मौत के रास्ते,
मैं उन्हें जीनें की बहारें समझा।
यह समझना ही समझा, तब मैंने,
पर और कूछ न तुम्हारे बगैर समझा।
जो मिलते ही नहीं कभी,
वो तनहाईयों का आलम क्या जाने।
फूलों की सेजों पर बैठने वाले,
काटो पर चलनेवालों को नहीं हँसते।
माफ़ करना मुझको ऐ बेवफा,
तेरी नफरत को मैं प्यार समझा।


उल्झन

तन को धोऊँ कितना 
मन-मैल न जाये,
शंका कितनी निरसन  करूं
समाधान न होये।
नित  शाम ढले सूरज डूबे
भोर-भये फिर आये,
एक बार जो जाये जगसे
क्यों फिर लौट न आये?
नित आगे-आगे बढूँ
पाप का घड़ा भरता जाये।
तुम बिन ओ श्याम मेरे
चैन न आये मोहे,
अब आ भी जाओ श्रीधर

मीरा बैठी बाट जोहे ।

कविता

हळूच येउनी, स्वप्नात माझ्या,
हळूच गोड गालावर पाडूनी खळी,
मी तूझीच ज्ञानेश्वरी,
तूझीच मी गीता,
मी तुझीच आहे रे चांदण्या रातीतली कविता.




दर्द

जीतेजी भूखे थे प्रेम के लिये 
मरने पे आसूओं से नहा लिये ,
जीने में काँटे उपहार में दिये 
तब उन्हें मन-सुख मिला ,
मरने बाद मजार पर तार मिला 
स्याही के अक्षर थे,
'हमें क्यों छोड़ गये?
ये लोग बेरहम, बेहया हैं बड़े'
देख ये मजार के पत्थर भी रो पड़े,
पर हम मुस्कुरा पड़े,
रूही साथी भी पूछ लिये 
हमने अर्ज किया तो वो भी रो दिये ,
की ' इश्रते कतरा है दिरया में मिल जाना,

दर्द का हद से गूजरना है, दवा बन जाना।'

तूफान


ये कैसा बेरहम, बेलगाम तूफ़ान है
न कश्ती बढती है, न ही ये डुबो देता है,
पतवार पड़ी माझी को तरसे,
आंखों से बिन मौसम पानी बरसे,
फिर  भंवर से बच सका न कोई,
रूह बेजान बदन से अलग हो गई,
वक्त बदला, कश्ती भी टूट गई

अकेली पतवार जाने क्या ढूंढती रह गई ।

बिदाई

बचपन से जिसको पाला पोसा
बूरी नजरों से जिसे  बचाया
कली से फूल जिसे  बनाया
उसी कलेजे के टुकड़े के लिये 
आखों में आसुओं के बोझ लिये 
चमन के साथी रोते रहे
बहन को दूर जाते देखते रहे
बूढ़ा माली हँसते-हँसते
आँखें भिगोता रहा
भंवरा आज उसके फूलको

उससे दूर लेकर जाता रहा।

रुपैय्या

दुिनया पर मेरा राज है
मैं दुिनया से नहीं, वह खुद मुझसे है,
राखी बाँधने से पहले बहन भाई से मेरी माँग करती
नौकरी पाने के लिए भी मेरी ही जरूरत होती,
मेरे कारण होती हैं शािदयाँ
मेरे कारण कितनी होती बरबािदयाँ
मेरी वजह से ही लोग शराब पीतें हैं
मेरी वजह से लहू की दिरया बहाते हैं
मेरे कारण अबलायें वैश्या होती हैं
मेरे कारण ही ये लडाईयाँ होती हैं
क्या मुझे पहचाना भैय्या

कहते हैं लोग मुझे रुपैय्या ।

अँधेरा

A poem written during the early independence days.

छाया है चारों ओर अंधेरा
जाने कब होगा सवेरा
पास वालों में रोशनी है
दिया  छोटासा हमारा है
दिये से सूरज बनाना है
रात से सवेरा करना है
सवेरा न आये जब तक
हृदयों की मशालें जलेंगी तब तक
एक दिन ऐसा आएगा
तब दुनिया अपनी बनायेंगे

सबकी नजरों में भारत पूरा कहलायेंगे ।

मेरी कविता

सारा भूमंडल करने लगा अर्चना
फिर भी न बन पाई मेरी रचना,
बिनती करने लगी जब दसों दिशायें,

जनम लेने लगी तब मेरी कवीताएँ।