जीतेजी भूखे थे प्रेम के लिये
मरने पे आसूओं से नहा लिये ,
जीने में काँटे उपहार में दिये
तब उन्हें मन-सुख मिला ,
मरने बाद मजार पर तार मिला
स्याही के अक्षर थे,
'हमें क्यों छोड़ गये?
ये लोग बेरहम, बेहया हैं बड़े'
देख ये मजार के पत्थर भी रो पड़े,
पर हम मुस्कुरा पड़े,
रूही साथी भी पूछ लिये
हमने अर्ज किया तो वो भी रो दिये ,
की ' इश्रते कतरा है दिरया में मिल जाना,
दर्द का हद से गूजरना है, दवा बन जाना।'
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