Sunday 15 June 2014

बिदाई

बचपन से जिसको पाला पोसा
बूरी नजरों से जिसे  बचाया
कली से फूल जिसे  बनाया
उसी कलेजे के टुकड़े के लिये 
आखों में आसुओं के बोझ लिये 
चमन के साथी रोते रहे
बहन को दूर जाते देखते रहे
बूढ़ा माली हँसते-हँसते
आँखें भिगोता रहा
भंवरा आज उसके फूलको

उससे दूर लेकर जाता रहा।

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