बचपन से जिसको पाला पोसा
बूरी नजरों से जिसे बचाया
कली से फूल जिसे बनाया
उसी कलेजे के टुकड़े के लिये
आखों में आसुओं के बोझ लिये
चमन के साथी रोते रहे
बहन को दूर जाते देखते रहे
बूढ़ा माली हँसते-हँसते
आँखें भिगोता रहा
भंवरा आज उसके फूलको
उससे दूर लेकर जाता रहा।
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