Sunday 15 June 2014

अँधेरा

A poem written during the early independence days.

छाया है चारों ओर अंधेरा
जाने कब होगा सवेरा
पास वालों में रोशनी है
दिया  छोटासा हमारा है
दिये से सूरज बनाना है
रात से सवेरा करना है
सवेरा न आये जब तक
हृदयों की मशालें जलेंगी तब तक
एक दिन ऐसा आएगा
तब दुनिया अपनी बनायेंगे

सबकी नजरों में भारत पूरा कहलायेंगे ।

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