ये कैसा बेरहम, बेलगाम तूफ़ान है
न कश्ती बढती है, न ही ये डुबो देता है,
पतवार पड़ी माझी को तरसे,
आंखों से बिन मौसम पानी बरसे,
फिर भंवर से बच सका न कोई,
रूह बेजान बदन से अलग हो गई,
वक्त बदला, कश्ती भी टूट गई
अकेली पतवार जाने क्या ढूंढती रह गई ।
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